Thursday 19 May 2016

बात इतनी सी नही...(1)

   जीवन और जिंदगी ये दो शब्द ; लेकीन इनके अर्थोका भेद बहुत बडा है l एक जमीन तो दूसरा आसमान है l जिंदगी की रेल जन्म से शुरू होती है और मृत्यू पर रुक जाती है l जीवन की रेल नही होती l क्यों की रेल का प्रस्थान होता है , और गंतव्य भी होता है रेलका l इस लिये जीवन की रेल कहना ठीक नही होगा l जीवन बस एक गती है l एक सनातन प्रवाह कहो l गती जीवन का स्वभाव भी है और परिचय भी l जीवन का आरंभ नही , इस लिये जीवन का अंत नही होता है l 
    
             ऋतु आते है जाते है l धूप , ठंड और वर्षा फिर वही चक्र l सुबह , दोपहार , शाम फिर रात फिर सुबह , फिर वही चक्र l बज का फुटना , पौधा होना , पेड होना , फूल और फल लगना l फिर नये बीज ... फिर से वही चक्र l बारीश का गिरना , झरनो का बहना , नदी का नृत्य , सागर मे समर्पण , सागर की भाप , बादलो का उमडना फिर वर्षा l फिर वही चक्र l जन्म , व्याधी , जरा और मृत्यू l फिर वही चक्र l इस स्वयंचलित चक्र का बिना रुके अव्याहत घुमने का नाम जीवन है l जीवन चलने का नाम .... चालते रहो सुबह शाम .... इस फिल्मी गीत मे भी जीवन की गती को दोहराया गया है 
           
             कहो तो जीवन एक बडी से बडी जटील घटना है l जीवन सबसे बडा रहस्य है l जितना इसे सुलझने का प्रयास करते जावोगे उतने ही हम उलझते जाते है l विज्ञान और है भी क्या ? शिवाय उलझने और सुलझने से ? फिर ये सुलझ और उलझन बन जाती है l विज्ञान जीवन के राहस्यों को नग्न करने के प्रयासों से अधिक कुछ भी नही l और सबसे बडा मजाक तो ये है , की विज्ञान अपनी हार नही मानता l और जीवन को जितना कठीन है l जीत की नशा उतरती है , तो हो सकता है , हम जीवन के प्रति विनम्र हो सकते है l विनम्रता एक सुंदर कुंजी है , जिससे जीवन को जीता नही , किंतू थोडासा जाना जा सकता है l बच्चों जैसी सरल जिज्ञासा और साधूओ जैसी सरल विनम्रता हो तो जीवन का दर्शन हो सकता है l विज्ञान और वैज्ञानिक अभी नम्र नही हुए , इसी लिये खोजे जारी रहेंगी l जीवन के प्रति जिज्ञासा और विनम्रता ही जीवन के रहस्यों को जानने की योग्यता है l
               

              जीवन को जानने की शुरुवात जिंदगी को जानने से शुरू होती है l जिंदगी एक अर्थमे छोटा जीवन होती है l सुबह से लेकर शामतक हम से और सब लोगों से संबंधित कुछ न कुछ घटनाये घटती है l ये घटनाये केवल मानवीय नही किंतू प्राणी , पक्षी आदि जगत मे और पुरे अस्तित्व मे क्षण प्रतिक्षण घटती है l हम यदी जिज्ञासा की आंखों से और विनम्रतासे वर्तमान को देखे . अनुभव करे तो धीरे धीरे स्थूल घटनाओ के पिछे कुछ आनंददायी जीवनदर्शन होने आरंभ हो जायेंगे l सुख दुख से , संघर्षसे भरी जिंदगी झेलनी आसान हो जायेगी l जिंदगी बोझ नही , लेकीन अब की भागदौड की रफ्तार मे जिंदगी बोझ के अलावा रह भी क्या गयी है ? चलो हम और आप मिलकर जिंदगी की कडवाहट को कम करे l इसके श्रेयस्कर बोध को जानने का प्रयास करते है l


4 comments:

  1. अति सुन्दर.आपका प्रयास सफल हो. मेरी ओरसे अनेक शुभ कामनाएं.

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    1. आपका आशीष मेरा आत्मबल बढ़ाता है दादा ।
      और आपका प्रतिसाद प्रेरणादायी है ।
      ह्रदयपुर्वक धन्यवाद !

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    2. आपका आशीष मेरा आत्मबल बढ़ाता है दादा ।
      और आपका प्रतिसाद प्रेरणादायी है ।
      ह्रदयपुर्वक धन्यवाद !

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    3. आपका आशीष मेरा आत्मबल बढ़ाता है दादा ।
      और आपका प्रतिसाद प्रेरणादायी है ।
      ह्रदयपुर्वक धन्यवाद !

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