धुवा ...
मेरे गाव मे किसी आध्यात्मिक गुरु का
सत्संग होने जा रहा था l अभी महाराजजी
व्यासपीठ पर आने को कुछ समय बाकी था l शिष्य और भक्त लोग
आपनी अपनी सेवा मे लगे हुए थे l कुछ महिलाये व्यासपीठ के
सामने रंगोली चितारने का काम कर रही थी l एक शिष्य व्यासपीठ
के चारों और धूपपात्र रख रहा था l फिर थोडी ही देर मे
उसने धूपपात्र मे जलते हुए अंगारोपर धूप की राख डाली l सब
तरफ एक सुगंधी धुवा उठा l वातावरण सुगंधित और भक्तिमय हो गया
l संयोगवश मै उधरसे गुजर रहा था l मेरी
दृष्टी अचानक एक नन्हे बच्चे पर पडी l मेरी वजह से
उसके स्वाभाविक नटखटपण मे विक्षेप आने न पाये ,इसलिये मै
थोडे दूर जाकर बैठ गया l वहा से मैने देखा , की ... धुपपात्र से निकलने वाले धुए के बादल उस बच्चे को सम्मोहीत कर रहे
थे l आकाश मे देखे जाने वाले बादल जैसे जमीन पर उतर आये हो l
अचानक वो नन्हा बच्चा धुपपात्र के पास गया l अपने
नन्हे हातो से उसने उस धुए के बादल को अपनी नन्ही मुट्टी मे पकडा l उसका चेहरा खुशी से उछल रहा था l बंद मुट्टी को पकडे
वो बच्चा दौडकर पास ही बैठे उसके पिताजी के पास गया l
" पापा , देखो मैने मुट्टी मे क्या पकडा ? "
दिखावो तो l उसके पिताजी बोले l
नही पहले चॉकलेट l बच्चा बोला l
उसके पिताजी ने सच मे जेब से चॉकलेट
निकाली l और बच्चे ने अपनी बंद
मुट्टी खोली l मुट्टी बिलकुल खाली थी l
' अरे , ये कैसे हुवा ? कहा गया धुवा ? मैने तो पक्का पकडा था मुट्टी मे l ये गायब कैसे हो
गया ? ' बच्चे के चेहरे पर कितने सारे प्रश्न चमक रहे
थे l और साथ साथ कुछ कुछ निराशा भी l
मेरा बैठे बैठे मनोरंजन तो हुवा ही l लेकीन मै भी उस नन्हे बच्चे के जैसे सोच मे पड
गया l
हम सब भी क्या बच्चे नही ? वो छोटा बच्चा है और हम बडे बच्चे l छोटे - बडे का फर्क भुला देते है , तो हम भी बच्चे
जैसा ही कुछ कर रहे है l बच्चा मुट्टी मे धुवां पकड रहा है ,
और हम मुट्टी मे सुख का धुवा पकडने मे व्यस्त l धुवां सिवाय भ्रम के और कुछ नही l ये सत्य बच्चा कभी
न कभी जान भी जायेगा l लेकीन हमारा क्या ? हम तो जानकर भी अनजाने बन रहे है l कितनी बार मुट्टी
खोली हमने भी l सुख का बादल हमेशा गायब होता हुवा पाया है
हमने l बच्चा एक , दो , तीन बार धुवा पकडने का प्रयोग करते करते ' धुवां
पकडना बस एक भ्रम है l ' इस सत्य को जान लेगा , और दुबारा वही तथ्यहीन बात करना छोड भी देगा l लेकीन
हम ? हम जानकर भी वही गलती बार बार कर रहे है l इस छोटे से अनुभव मे बच्चा तो निमित्त है बोध का l
क्यो न बच्चे से सीख ले , की जितना जल्दी हो सके भ्रम के सच को जान लिया
जाय l
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